उप पंजियक व बेंडरों की सांठ-गांठ से लुट रहे किसान रजिस्ट्री खर्च से ज्यादा ली जा रही सुविधा शुल्क,

मनमानी पर लगाम लगाने नही उठाये जा रहे कोई कदम,

 

 

 

 

 

बीरबल समाचार सीधी। जिला मुख्यालय में उप पंजियक एवं स्टांप वेंडरों की सांठ-गांठ से किसान अपने आप को ठगा महशूस कर रहे है। स्टांप बेंडरों की मनमानी के कारण रजिस्ट्री कराने पहुंच रहे किसानों को मनमानी फीस चुकानी पड़ रही है। उप पंजियक कार्यालय के आसपास ही स्टांप बेेंडर चक्कर लगाते देखे जाते है जैसे ही क्रेता-विक्रेता मिले झट से अपने चंगुल में लेकर रफूचक्कर हो जाते है। बताया गया कि जिला मुख्यालय स्थित स्टांप बेंडरो की मनमानी इतनी बढ़ गई है ये मनमाना फीस वसूल कर रहे है। साथ ही यह भी कहते है कि इसमें उप पंजियक को भी देना पड़ता है। स्थिति यह है कि 500 रुपए का स्टांप 600 में दिया जाता है। पहले वेंडर द्वारा स्टांप देने से मना किया जाता है। जब उन्हें मोटा कमीशन दिया जाता है तो हितग्राहियों को अतिरिक्त रुपए लेकर स्टांप दिया जाता है। यह पूरा खेल उप पंजीयक की शह पर चल रहा है। जिसकी शिकायत पूर्व में भी की गई थी। बावजूद कमीशनखोरी की इस प्रक्रिया पर किसी तरह से रोक नहीं लग पा रही है। स्टांप या ई-स्टांप पर हितग्राहियों से किसी प्रकार का कमीशन वसूल करने का प्रावधान नहीं है। सर्विस वेंडरों को स्टांप बेचने के लिए ट्रेजरी विभाग से दो फीसदी कमीशन दिया जाता है। लेकिन इतने कमीशन में यह खुश नहीं रहते हैं। फिर लोगों को स्टांप बेचकर 20 से 40 प्रतिशत तक अधिक कमीशन वसूल किया जाता है। ऐसा नहीं है कि इसकी खबर अधिकारियों को नहीं है। लेकिन कुछ विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से यह कारनामा खुलेआम संचालित हो रहा है। जिस पर आज तक किसी जिम्मेदार अधिकारी ने कार्रवाई करने का विचार तक नहीं किया है। इसके कारण तहसील में रजिस्ट्री या नोटरी के लिए आने वाले लोग हर दिन अपने आप को ठगा महसूस करते हैं।

 

 

कुछ इस तरह चलता है खेल,

 

 

सर्विस प्रोवाइडर और वेंडर 50 से 100 रुपए तक के स्टांप लोगों को 40 फीसदी कमीशन पर बेचते हैं। पचास रुपए के स्टांप को 70 और 100 के स्टाम्प को 120 रुपए में दिया जाता है। वहीं सर्विस प्रोवाइडर 500 के ई-स्टांप को 600 और 1000 के स्टांप को 1150 रुपए में हितग्राहियों को देते हैं। इस तरह कमीशन का यह खेल जोरों पर चल रहा है। जबकि विभाग द्वारा ऐसा कोई नियम नहीं है कि स्टांप पर लोगों से कमीशन वसूला जाए। फिर भी जिला मुख्यालय में केबिन सजाकर बैठने वाले लोग अपनी आदत से बाज नहीं आते हैं और अधिक लाभ कमाने के चक्कर में ट्रेजरी से तय कमीशन के बाद लोगों से कई गुना अधिक राशि लेते हैं।

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