जिले में तेजी से घट रहा शासकीय भूमि का क्षेत्रफल

राजस्व रिकार्ड में दर्ज है 83043 हे. शासकीय भूमि,

शासकीय भूमि को अवैध कब्जे व अतिक्रमण से नहीं बचा पा रहा राजस्व अमला,

 

 

 

 

 

 

बीरबल समाचार सीधी। जिले के राजस्व रिकार्ड में कहने के लिए 83043 हेक्टेयर शासकीय भूमि दर्ज है। धरातल पर देखा जाए तो सुदूर अंचलों में भी शासकीय भूमि का कोई रता-पता नहीं है। शासकीय भूमियों पर जिस तरह से अतिक्रमण करने की होड़ मची हुई है उसी के चलते शासकीय कार्यों के लिए भी खाली भूमि तलाश करने में राजस्व अमले का पसीना छूट जाता है। शहरी से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक शासकीय भूमि रिकार्डों में भले ही दर्ज हो लेकिन मौके की स्थिति यह है कि इन पर सालों से अतिक्रमण है। कई अतिक्रमणकारी तो शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा करने के बाद मकान बनाकर परिवार के साथ सालों से आवाद हैं। वहीं सैकड़ों हेक्टेयर शासकीय भूमि पर अवैधानिक रूप से खेती-किसानी का कार्य भी चल रहा है। स्थिति यह है कि सभी ग्राम पंचायतों में चरनोई भूमि रिकार्ड में दर्ज है लेकिन मौके पर कहीं भी भूमि खाली नहीं है। अपनी भूमि को ही अतिक्रमणकारियों से राजस्व अमला वापस नहीं ले पा रहा है। यह स्थिति कई दशक से बनी हुई है। प्रदेश सरकार द्वारा कई बार अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाने के निर्देश भी दिए गए। किन्तु राजस्व अधिकारियों में इच्छाशक्ति की कमी के चलते शासकीय भूमि अतिक्रमणकारियों के कब्जे से मुक्त नहीं हो पाई। उधर जानकारों का कहना है कि शासकीय भूमि को लेकर लोगों की सोच कुछ अलग है। सभी यह मानते हैं कि शासकीय भूमि उनकी है। इसी वजह से शासकीय खाली भूमि को देखकर लोग आनन-फानन में रातों रात अवैध कब्जा कर लेते हैं। इस मामले में हल्का पटवारी भी अवैध अतिक्रमण को लेकर तहसील से त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित नहीं कराते। इसी वजह से आज स्थिति यह हो गई है कि जिले में मुख्य सडक़ों के किनारें भी लोग सडक़ की पटरी पर झोपड़ी तानकर दुकानदारी कर रहे हैं या फिर धीरे-धीरे मकान बनाकर उसमें रहना शुरू कर देते हैं। जिसके चलते सडक़ की पटरियां भी लगातार संकीर्ण हो रही हैं। इस मामले में सडक़ संधारण से जुड़े विभागीय अधिकारी भी अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही गंभीरता पूर्वक सुनिश्चित नहीं कराते हैं।

 

 

शहरी क्षेत्रों से गायब हो चुकी है शासकीय भूमि,

 

 

जिला मुख्यालय में सैकड़ों एकड़ भूमि शासकीय रिकार्डों में दर्ज थी। चार दशक के अंदर भू माफिया के सक्रिय होने पर समूची खाली भूमि गायब हो चुकी है। स्थिति यह है कि नजूल की खाली भूमि पर सालों से बहुमंजिला ईमारतें एवं दुकानें खड़ी हो चुकी हैं। शासकीय प्रयोजन के लिए जब खाली भूमि की खोज की जाती है तो मालुम पड़ता है कि सालों से यहां पक्की इमारत बनी हुई है। इसी वजह से राजस्व अमला इस मामले में हाथ डालने का प्रयास नहीं करता। लोगों में खाली शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा करने की हवस इतनी ज्यादा है कि नदी, नालों के ऊपर भी मकान का निर्माण करने में कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। इसी वजह से शहर के मध्य से प्रवाहित सूखा नाला एवं हिरण नाला वजूद ही खतरे में पड़ा हुआ है।

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