‘वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ पर अभिभावकों को किया गया जागरूक,
बीरबल समाचार सीधी। जिला चिकित्सालय के जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र और दिव्यांगजन पुनर्वास केंद्र में ‘वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ के अवसर पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष भारती और डॉ. विनय सिंह, डीईआईसी सीधी के मैनेजर पुष्पेंद्र शुक्ला तथा डीडीआरसी सीधी के विशेष शिक्षक शिवांसु शुक्ला ने भाग लिया और अभिभावकों को जागरूक किया।
क्या है वर्चुअल ऑटिज्म?
विशेषज्ञों ने बताया कि वर्चुअल ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है, जो अधिक स्क्रीन टाइम के कारण विशेष रूप से दो साल से कम उम्र के बच्चों में देखने को मिलती है। जब छोटे बच्चे मोबाइल, टीवी या लैपटॉप पर ज्यादा समय बिताने लगते हैं, तो उनके व्यवहार और संचार कौशल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण,
ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और माता-पिता के बुलाने पर प्रतिक्रिया न देना। खेल-कूद में रुचि की कमी और खिलौनों से खेलने का तरीका न समझ पाना। सामाजिक मेल-जोल में कमी, यानी दूसरों से घुलने-मिलने में रुचि न लेना। मूड स्विंग, जिद्दीपन और चिड़चिड़ापन। याददाश्त और समझने की क्षमता पर असर।
वर्चुअल ऑटिज्म से बचाव के उपाय,
डॉ. आशीष भारती, डॉ. विनय सिंह, पुष्पेंद्र शुक्ला और शिवांसु शुक्ला ने अभिभावकों को इस समस्या से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिएकृ दो साल से छोटे बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन न दें। बच्चों को खेल, कहानियां, पेंटिंग, संगीत और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखें। उन्हें बाहर घुमाने और प्रकृति से जोड़ने के लिए पार्क लेकर जाएं। माता-पिता खुद बच्चों के साथ समय बिताएं, ताकि वे स्क्रीन के बजाय लोगों से संवाद करना सीखें। रात में सोते समय बच्चों को कहानियां सुनाएं, जिससे उनकी कल्पनाशक्ति और सोचने-समझने की क्षमता विकसित हो।
विशेषज्ञों की अपील,
इस अवसर पर डॉ. आशीष भारती और डॉ. विनय सिंह ने अभिभावकों से अपील की कि वे अपने बच्चों को स्क्रीन से दूर रखें और उनके मानसिक एवं सामाजिक विकास पर ध्यान दें। पुष्पेंद्र शुक्ला और शिवांसु शुक्ला ने कहा कि यदि माता-पिता इन उपायों को अपनाते हैं, तो कुछ ही दिनों में बच्चों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा।