रीवा सम्भाग के पूर्व कमिश्नर कलेक्टर सीधी सीईओ जिला पंचायत जल संसाधन के ई ई पर लोकायुक्त की कार्रवाई,
बीरबल समाचार सीधी।जल संसाधन विभाग के महान नहर संभाग में बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के 19.22 करोड़ रुपए की राशि जारी कर नियम विरुद्ध 14.31 करोड़ रुपए व्यय करने के मामले में लोकायुक्त ने तत्कालीन संभागायुक्त रीवा गोपालचंद्र डाड, तत्कालीन कलेक्टर साकेत मालवीय, तत्कालीन जिपं सीईओ राहुल धोटे, कार्यपालन यंत्री आरईएस हिमांशु तिवारी और पूर्व कार्यपालन यंत्री जल संसाधन एसएम तिवारी सहित अन्य के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया है। इस मामले की शिकायत अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह परिहार ने लोकायुक्त में की थी।शिकायत के अनुसार, जल संसाधन विभाग के महान नहर संभाग में बिना अनुमति 19.22 करोड़ रुपए जारी किए गए थे। इनमें से 14.31 करोड़ रुपए नियमों के विरुद्ध व्यय कर दिए गए। इसके चलते तत्कालीन कमिश्नर रीवा द्वारा अनुविभागीय अधिकारी कुसमी को निलंबित कर दिया गया था और तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जल संसाधन विभाग एसएम तिवारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। तत्कालीन कलेक्टर साकेत मालवीय ने दोनों अधिकारियों के निलंबन की अनुशंसा की थी, क्योंकि दोनों का कृत्य एक जैसा था, लेकिन समुचित कार्रवाई नहीं की गई। शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया था कि मनरेगा की राशि जिला पंचायत के अधीन होती है, जिसके समन्वयक और अतिरिक्त समन्वयक क्रमश: कलेक्टर और जिला सीईओ होते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जिला पंचायत से स्वीकृत राशि जल संसाधन विभाग तक कैसे पहुंची। जांच अधिकारी, कार्यपालन यंत्री आरईएस हिमांशु तिवारी ने अपने प्रतिवेदन में ब्लॉक के सहायक यंत्री, उपयंत्री और अन्य को दोषी बताया, लेकिन उनके नाम और पते का खुलासा नहीं किया।
इसलिए घेरे में आए तत्कालीन अधिकारी शिकायतकर्ता अधिवक्ता ने बताया कि इस पूरे मामले में तत्कालीन कलेक्टर द्वारा आरईएस के एसडीओ अरूण सिंह व जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री एसएम तिवारी के विरुद्ध कार्रवाई के लिए एक जैसा प्रस्ताव भेजा था, लेकिन तत्कालीन कमिश्रर डाड द्वारा केवल एसडीओ अरुण सिंह को निलंबित किया गया, कार्यपालन यंत्री तिवारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया। बाद में एसडीओ को भी बहाल करते हुए उसी जगह पदस्थापना कर दी। वहीं तत्कालीन कलेक्टर द्वारा यह गड़बड़ी की गई कि मनरेगा की राशि जिला पंचायत के अधीन होती है, जिसके समन्वयक कलेक्टर होते हैं। ऐसी स्थिति में जिला पंचायत से राशि स्वीकृति की जाकर जल संसाधन विभाग को हस्तांतरित करना बिना उनकी सहमति के संभव नहीं हो सकता है। इसलिए मामले में दोनों अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है। इसी के तहत पूर्व अधिकारियों पर लोकायुक्त ने प्रकरण दर्ज किया है।