मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में रविवार को भगवान बलराम के जन्मोत्सव हलछठ का पर्व श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया गया,

 

 

 

बीरबल समाचार सीधी। हलछठ का व्रत माताओं द्वारा पुत्रों की दीघार्यु के लिए रखा गया और विधि-विधान से हलछठ की पूजा अर्चना की गई। हलषष्ठी व्रत में महिलाओं ने सुबह से ही स्नानादि आदि से निवृत होकर नित्यक्रम करने के पश्चात हलषष्ठी व्रत धारण करने का संकल्प उत्तराभिमुख होकर किया। बलराम जयंती पर होने वाले इस पर्व पर हल की पूजा अर्चना होती है। गौरतलब है कि हलछठ पूजा के लिए एक दिन पहले बाजार में महिलाएं पूजा की सामग्री खरीदती हुई देखी गई। वहीं पूजा के लिए महिलाएं सुबह के समय पलाश, कांस एवं कुश के नीचे भगवान शिव पार्वती स्वामी कार्तिकेय एवं गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके धूप दीप पुष्प आदि से भक्तिभाव से पूजन किया। हलछठ पर्व के तहत बाजार में चहल-पहल रही। पूजा अर्चना के बाद उपवास रखने वाली माताओं ने अपने पुत्रों के दीघार्यु और भलाई की कामना की। घर-घर के आंगन में कुश गाड़ कर रीति के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान किए गए। महिलाओं ने व्रत रख पूजा अर्चना की। मान्यता है कि श्रीकृष्णजी के जन्म से पूर्व श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। हलषष्ठी का व्रत बलरामजी के जन्म के उपलक्ष्य में किया जाता है। बलरामजी का शस्त्र हल है। व्रत के पूजन सामग्री के रुप में उस भैंस के दूध, दही-घी का प्रयोग किया जाता है जिस भैंस को पाड़ा का जन्म हुआ होता है साथ में महुआ फूल पत्ता डालियां , तिन्नी पसही का चावल, फूल, दूब, रोली, चन्दन, नारियल, कुश और जरबा का प्रयोग होता है। इसी क्रम में सुबह से ही महुआ और कुश लगाकर व गड्ढा खोद कर महिलाओं ने पूजन-अर्चन किया। पुत्रों को गड्ढे के पानी में पैर डालकर धुला और उनकी लंबी उम्र की कामना की। पुत्रों ने भी माता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। इसी तरह घर-घर में भी कुंड बने और दिन भर पूजन-अर्चन का सिलसिला चलता रहा। खाने में बिना जोते खेत के अन्न-फल व अन्य सामग्री का इस्तेमाल महिलाओं ने किया। जिसमें पसही का चावल, दही का प्रयोग किया।

माताओं ने रखा निर्जला व्रत,

 

 

 

रीवा सम्भाग में हलषष्ठी व्रत उत्साह से मनाया गया। महिलाओं ने संतान के दीर्घायु के लिए व्रत रखकर कर विधि-विधान से पूजन किया। पूजन के बाद हलषष्ठी पर्व सें संबंधित कथा सुनी गई। महिलाओं ने पूजन के लिए गढ्ढा खोदकर सगरी बनाई तथा इसमें जरबेरी, कांश और पलाश वृक्षों की एक टहनी खड़ी कर बांधी। सूत की पिंडी रखकर पूजा की। भैंस के घी से दीपक जलाया गया और हवन में भी भैंस के ही घी का उपयोग किया। बच्चो के दीघार्यु होने की कामना की। हलषष्ठी करने वाली महिलाएं व्रत के दिन खेतों हल जोतकर उत्पन्न की जाने वाली किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं करती हैं। पेड़ों से उत्पन्न व स्वयं प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले छह प्रकार के भोज्य पदार्थ का ही सेवन कर व्रत तोड़ती हैं।  हरछठ व्रत माताएं संतान के सुखद जीवन व लंबी आयु के लिए रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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